दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक पटना का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है। पटना हजारों साल तक कई महान सम्राटों की राजधानी रहा है। गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर कई ऐतिहासिक स्मारकों, धरोहरों और विरासत स्थलों का स्थल रहा है। पटना में गांधी मैदान के पश्चिम में एक ऐतिहासिक धरोहर है- गोलघर। गोलघर को पटना की पहचान कह सकते हैं। बचपन में गांधी सेतु बनने से पहले स्टीमर से गंगा पार कर और बनने के बाद पुल से आते-जाते वक्त गोलघर देखकर पटना पहुंच जाने के रोमांच से भर उठता था। गोलघर गांधी मैदान के पश्चिम में बना है। इस साल 20 जुलाई, 2021 को गोलघर 235 साल का हो गया।
गोलघर से पटना का खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है। बचपन में जब गोलघर पर चढ़ता था, तो पूरा पटना काफी सुंदर दिखता था। गंगा नदी को देखकर तो मन प्रफुल्लित हो जाता था। लगता था कि गंगा नदी को देखता ही रहं, लेकिन बाद में कई बहुमंजिली इमारते बन जाने के कारण अब गोलघर से पूरा पटना नहीं दिख पाता है। उस वक्त जब गोलघर जाता था तो चढ़ते वक्त मस्ती के साथ ऊपर चला जाता था, लेकिन नीचे आते वक्त डर लगता था। सीढ़ी घिस जाने के कारण फिसल कर गिर जाने का डर लगा रहता था। काफी संभल कर धीरे-धीरे उतरता था।
गोलघर को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। पटना आने वाले तकरीबन सभी पर्यटक गोलघर देखने जरूर जाते हैं। अब तो पर्यटकों की सुविधा के लिए सरकार की ओर से काफी इंतजाम किए गए हैं। संगीतमय फव्वारे भी यहां लगाए गए हैं। बच्चों के लिए नीचे पार्क भी बनाए गए हैं। आप भी गोलघर से पटना शहर और गंगा नदी का शानदार और दिलचस्प नजारा देख सकते हैं।
गोलघर के निर्माण की योजना अंग्रेज गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने बिहार में साल 1770 में आए भीषण अकाल के बाद अनाज को रखने के लिए बनाई थी। ब्रिटिश इंजीनियर कप्तान जॉन गार्स्टिन ने 20 जनवरी, 1784 को इसे बनाना शुरू किया, जो 20 जुलाई, 1786 को बन कर पूरा हो गया। इसमें कोई पिलर नहीं है। अपने आप में इस अनोखे गोलघर में 1 लाख 40 हजार टन अनाज रखने की क्षमता है। 125 मीटर चौड़े और 29 मीटर ऊंचे गोलघर की दीवारें नींव पर 3.6 मीटर मोटी हैं। इसके शीर्ष पर 2 फीट 7 इंच व्यास का एक छिद्र अनाज डालने के लिए बनाया गया था, लेकिन बताया जाता है कि इसे कभी पूरा भरा नहीं गया। बाद में इस सुराख को बंद कर दिया गया।
कैसे पहुंचे-
पटना देश के सभी प्रमुख शहरे से रेल, सड़क और वायुमार्ग से जुड़ा हुआ है। सभी प्रमुख शहरे से यहां हवाई सेवाएं हैं। रेल और सड़क से देश के किसी भी हिस्से से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
कब जाएं-
पटना में गर्मी में काफी गर्मी और सर्दी में काफी सर्दी पड़ती है। इसलिए यहां सितंबर से नवंबर और फरवरी से मार्च के बीच जाना काफी अच्छा रहता है।
ब्लॉग पर आने और इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। अगर आप इस पोस्ट पर अपना विचार, सुझाव या Comment शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।
गोलघर से पटना का खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है। बचपन में जब गोलघर पर चढ़ता था, तो पूरा पटना काफी सुंदर दिखता था। गंगा नदी को देखकर तो मन प्रफुल्लित हो जाता था। लगता था कि गंगा नदी को देखता ही रहं, लेकिन बाद में कई बहुमंजिली इमारते बन जाने के कारण अब गोलघर से पूरा पटना नहीं दिख पाता है। उस वक्त जब गोलघर जाता था तो चढ़ते वक्त मस्ती के साथ ऊपर चला जाता था, लेकिन नीचे आते वक्त डर लगता था। सीढ़ी घिस जाने के कारण फिसल कर गिर जाने का डर लगा रहता था। काफी संभल कर धीरे-धीरे उतरता था।
गोलघर को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। पटना आने वाले तकरीबन सभी पर्यटक गोलघर देखने जरूर जाते हैं। अब तो पर्यटकों की सुविधा के लिए सरकार की ओर से काफी इंतजाम किए गए हैं। संगीतमय फव्वारे भी यहां लगाए गए हैं। बच्चों के लिए नीचे पार्क भी बनाए गए हैं। आप भी गोलघर से पटना शहर और गंगा नदी का शानदार और दिलचस्प नजारा देख सकते हैं।
गोलघर के निर्माण की योजना अंग्रेज गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने बिहार में साल 1770 में आए भीषण अकाल के बाद अनाज को रखने के लिए बनाई थी। ब्रिटिश इंजीनियर कप्तान जॉन गार्स्टिन ने 20 जनवरी, 1784 को इसे बनाना शुरू किया, जो 20 जुलाई, 1786 को बन कर पूरा हो गया। इसमें कोई पिलर नहीं है। अपने आप में इस अनोखे गोलघर में 1 लाख 40 हजार टन अनाज रखने की क्षमता है। 125 मीटर चौड़े और 29 मीटर ऊंचे गोलघर की दीवारें नींव पर 3.6 मीटर मोटी हैं। इसके शीर्ष पर 2 फीट 7 इंच व्यास का एक छिद्र अनाज डालने के लिए बनाया गया था, लेकिन बताया जाता है कि इसे कभी पूरा भरा नहीं गया। बाद में इस सुराख को बंद कर दिया गया।
बताया जाता है कि अनाज भंडारण के लिए बनाए गए गोलघर के निर्माण में कुछ खामियों के चलते इसका इस्तेमाल नहीं हो पाया। एक तरह से अनाज गोदाम गोलघर में अनाज रखने ले लिए बोरे को 145 सीढ़ियों से ऊपर ले जाकर 25 मीटर ऊंचे शीर्ष पर बने छिद्र से भीतर डालना होता था, जो काफी कठिन काम था। इसके साथ ही इसमें अनाज निकासी के लिए सिर्फ एक छोटा सा दरवाजा था जो अंदर की ओर खुलता था और अनाज भर जाने पर अंदर की ओर खोलना काफी मुश्किल काम होता था। ऐसे में गोलघर गोदाम की जगह एक पर्यटक स्थल बन गया। आप 10 रुपये का टिकट लेकर गोलघर परिसर में जा सकते हैं।
सभी फोटो- बिहार टूरिज्म |
कैसे पहुंचे-
पटना देश के सभी प्रमुख शहरे से रेल, सड़क और वायुमार्ग से जुड़ा हुआ है। सभी प्रमुख शहरे से यहां हवाई सेवाएं हैं। रेल और सड़क से देश के किसी भी हिस्से से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
कब जाएं-
पटना में गर्मी में काफी गर्मी और सर्दी में काफी सर्दी पड़ती है। इसलिए यहां सितंबर से नवंबर और फरवरी से मार्च के बीच जाना काफी अच्छा रहता है।
ब्लॉग पर आने और इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। अगर आप इस पोस्ट पर अपना विचार, सुझाव या Comment शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।
-हितेन्द्र गुप्ता
Wow! Interesting to know that Golghar is pillar less.
ReplyDeleteBeautiful architecture! Enjoyed reading this post.
शुक्रिया
DeleteInteresting post! Lots to learn from your blog.
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